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Monday, February 28, 2011

I Hate You…......................................




I was fine before you
walked into my life
I hate your hair, your clothes and your style
I hate your humor, your voice and your smile
I hate everything that belongs to you Because they just remind me of you
I hate you when you don’t even care to talk at me
I hate you when you ignore the stupid me
I hate to see you because the more I see you, the more I think of you
I hate you when I wake up in the morning Because you are the first thing on my mind
I hate you when I go to bed at night Because you are always in my dreams
I hate you when I’m feeling lonely
I hate you when you’re feeling sad Because you never share with me
I hate you when I try to get close to you Because you never understand me
I hate you because no matter how hard I try I cannot get you out of my mind
I hate you because the truth is that I can’t hate you any more
I hate you because I never hate you at all
I hate you because you don’t know how much I love you

..................................................................................................................up ki

Tuesday, February 22, 2011

मुझे प्यार नहीं चाहिए

तुमने मुझे याद किया. मुझे बेहद खुशी हुई. कितना अच्छा है यह अहसास कि हम अपना श्रेष्ठतम यानी अपना मन दूसरे को देते हैं. उसे, जो हमें अच्छा लगता है. बदले में उसका मन लेते हैं. यह सब कुछ इतनी आसानी से बिना किसी कठिनाई और प्रेम की अपेक्षा के होता है.


मेरी बचपन से ही यह इच्छा रही है कि मुझे लोग खूब प्यार करें. लेकिन अब मैं इसके मायने समझ पाई हूं. अब मैं हर एक से कहती हूं कि मुझे प्यार नहीं चाहिए. मुझे पारस्परिक समझ चाहिए. मेरे लिए यही प्यार है. जिसे आप प्रेम की संज्ञा देते हैं- बलिदान, वफादारी, ईष्र्या...उसे दूसरों के लिए बचाकर रखिये. किसी दूसरे के लिए. मुझे यह नहीं चाहिए. मुझे सिर्फ ऐसे आदमी से प्रेम हो सकता है जो वसंत के किसी दिन में मुझसे अधिक मौसम को, खिलते हुए फूलों को पसंद करे.

मैं समझ, सहजता और स्वच्छंदता चाहती हूं. किसी को पकड़कर नहीं रखना चाहती और न ही कोई मुझे पकड़कर रखे. मैं खुद से प्रेम करना सीख रही हूं. उस शहर से जहां मैं रहती हूं. सड़क के आखिरी छोर के पेड़ से और हवा से मुझे सुख है, असीम सुख.

..............................................................................................up ki

Thursday, February 17, 2011

DASTAN, Meri zindagi ki........

हमने दूर से, करीब के रिश्तों को.. टूटते देखा है ,
अपनों को ...गैरो के लिए ...छुटते देखा है

अब तो अपनों की खुशियों से भी दूर रखा है खुद को
क्युकी अपनों से ही ...अपनों को... लुटते देखा है

तिजोरी में रखे चंद कागज़ के टुकडो के कारण,
हमने अपनों को ...बेवजह रुठते देखा है
अपने हो जाते है पराये चंद लकीरों से
हमने बचपन के सपनो को खुली आँखों से टूटते देखा है

दर्द है इतना दिल में, किसे दिखाए ये जख्म ?
अपनों को हमने आँखे मूंदते देखा है !!

तुम दूर रहे , और दिल से भी दूर हो गए
तुम्हारे इंतज़ार में अखियों को बार बार रूसते देखा है !
हमने दूर से करीब के रिश्तों को टूटते देखा है



                                                                                                    soma