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Tuesday, February 22, 2011

मुझे प्यार नहीं चाहिए

तुमने मुझे याद किया. मुझे बेहद खुशी हुई. कितना अच्छा है यह अहसास कि हम अपना श्रेष्ठतम यानी अपना मन दूसरे को देते हैं. उसे, जो हमें अच्छा लगता है. बदले में उसका मन लेते हैं. यह सब कुछ इतनी आसानी से बिना किसी कठिनाई और प्रेम की अपेक्षा के होता है.


मेरी बचपन से ही यह इच्छा रही है कि मुझे लोग खूब प्यार करें. लेकिन अब मैं इसके मायने समझ पाई हूं. अब मैं हर एक से कहती हूं कि मुझे प्यार नहीं चाहिए. मुझे पारस्परिक समझ चाहिए. मेरे लिए यही प्यार है. जिसे आप प्रेम की संज्ञा देते हैं- बलिदान, वफादारी, ईष्र्या...उसे दूसरों के लिए बचाकर रखिये. किसी दूसरे के लिए. मुझे यह नहीं चाहिए. मुझे सिर्फ ऐसे आदमी से प्रेम हो सकता है जो वसंत के किसी दिन में मुझसे अधिक मौसम को, खिलते हुए फूलों को पसंद करे.

मैं समझ, सहजता और स्वच्छंदता चाहती हूं. किसी को पकड़कर नहीं रखना चाहती और न ही कोई मुझे पकड़कर रखे. मैं खुद से प्रेम करना सीख रही हूं. उस शहर से जहां मैं रहती हूं. सड़क के आखिरी छोर के पेड़ से और हवा से मुझे सुख है, असीम सुख.

..............................................................................................up ki

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