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Tuesday, May 10, 2011

Log har mod par...

Log har moD par ruk ruk ke sambhalte kyu hai,
Itna Darte hai to phir ghar se nikalate kyu hai,

Main na jugnu hu ,diya hu ,na koi tara hu,
Roshani vale mere nam se jalte kyu hai,

Nend se mera talluq hi nahi baraso se,
Khawab a a  ke meri chat pe Tehalte kyu hai,

MoD hota hai  sambhalne ke liye,
Aur sab log ferbe phisalte kyu hai..!!!
 
 

Wo Raat...


फिर वही रात थी...
लेकिन वो रोज़ से अलग थी
कहीं ज़िन्दगी के रोशनदानो से
थोड़ी सी हवा आ रही थी...
उस हवा में एक चुलबुली सी बात थी
वो मुझे अपने साथ ले जा रही थी
उन यादों के घने जंगल में
जहाँ सब पहले जैसा ही था
उन यादों की ख़ामोशी में
एक आवाज़ अभी भी चहक रही थी
वो तुम्हारी ही कुछ अलग सी बातें थी
वो तुम्हारे हंसने के बीच
आवाज़ का रुक जाना
वो यादें थी तुम्हारी
नहीं शायद वो तुम ही थी
वो हवा मुझे बहुत दूर ले चली थी...
आज उस रात को बीतें काफी अरसा हो गया है
लेकिन उस जंगल में आज भी भटक रहा हूँ
शायद उस रात की कभी सुबह नहीं होगी
क्यूंकि वो रात रोज़ से अलग थी....

Wednesday, May 4, 2011

कुछ मेरी बात... जी सायद आप सोमज नहीं पायो जी.............!!!!!

समय के साथ बहुत कुछ बदला है.. मैं भी बदला हूं, मेरी सोच के साथ-साथ परिस्थितियां भी बदली है.. कई रिश्तों के मायने बदले हैं.. पहले जिन बातों के बदलने पर तकलीफ़ होती थी, अब उन्ही चीजों को देखने का नजरिया भी बदला है और उन्हें उसी रूप में स्वीकार कर आगे बढ़ने की प्रवॄति भी आ गई है.. जिन चीजों के बदलने पर तकलीफ होती थी अब उन बातों को आसानी से स्वीकारने भी लगा हूं..
पहले कुछ भी अपना नहीं होता था, अब कई चीजें सिर्फ अपने लिये होने लगी हैं.. कभी-कभी लगता है कि कहीं स्वार्थी तो नहीं होता जा रहा हूं? मगर फिर लगता है कि अगर यह स्वार्थीपना है तो हम चारों ओर स्वार्थियों से ही घिरे हुये हैं.. वहीं कभी आशावादी तरीके से भी सोचता हूं.. सोचता हूं कि यही तो जीवन का सत्य है.. मानव स्वभाव है.. इसमें स्वार्थीपना कहीं भी नहीं है.. हर कोई अपना एक स्पेस चाहता है, तो उस स्पेस में क्यों जबरन घुसा जाये???????

अब रोना कम हो गया है.. पहले हर इमोशनल बातों पर रोना आता था.. अब वैसी बाते आने पर हंसी आती है.. खिसियानी हंसी.. लगता है जैसे खुद को धोखा देने कि कोशिश में लगा हूं.. दुनिया को दिखाना चाहता हूं कि देखो, मैं कितना प्रैक्टिकल हो गया हूं.. प्रक्टिकल होना या प्रोफेशनल होना अब भी मेरी समझ के बाहर की चीज है.. अब हर बात को पॉलिटिकली करेक्ट करने की कोशिश अधिक लगती है बजाये की दिल कि बात कही जाये.. प्रैक्टिकल होना या प्रोफेशनल होने का अभी तक एक ही मतलब समझ पाया हूं, महसूस कम करना.. कुछ भी महसूस ना करना.. जो जितना कम महसूस करता है, वह उतना ही प्रैक्टिकल है..

एक बात तो समझ में आती है कि मैंने मन में गांठ बांध लिया है की "बदलाव ही जीवन का अटूट सत्य है".. देर से ही सही, समझ में तो आया.. अब तुम्हारा वह पहाड़ी वाला शहर भी अधिक तकलीफ़ नहीं देता है, और ना ही यादों में अधिक ढ़केलता है.. सच कहूं तो तुम्हारे उस शहर आकर अंतरमन में रस्साकस्सी बहुत अधिक चलती है.. दिल उन यादों में डूबना चाहता है, मगर दिमाग कहीं और खींचना चाहता है..


एक बात जो समझा हूं, एक चीज कभी नहीं बदलती है.. चाहे सारा जमाना बदल जाये.. सारे रिश्तों के मायने बदल जाये.. ब्रह्मांड के बदलाव के नियम को झूठलाते हुये ना बदलने वाली चीज है-------------------------------------------------------!up ki


 

तन्हाई में जब मैं अकेला होता हूँ

तन्हाई में जब मैं अकेला होता हूँ, तुम पास आकर दबे पाँव चूम कर मेरे गालों को, मुझे चौंका देती हो, मैं ठगा सा, तुम्हें निहारता हूँ, तुम्हारी बाहों में, मदहोश हो कर खो जाता हूँ. सोच रहा हूँ..... अज अब तुम आओगी, तो नापूंगा तुम्हारे प्यार की गहराई को.... आखिर कहाँ खो जाता है मेरा सारा दुःख और गुस्सा ? पाकर साथ तुम्हारा, भूल जाता हूँ मैं अपना सारा दर्द देख कर तुम्हारी मुस्कान और बदमाशियां.... मैं जी उठता हूँ..........., जब तुम, लेकर मेरा हाथ अपने हाथों में, कहती हो....... मेरे बहुत करीब आकर कि.... रहेंगे हम साथ हरदम.................हमेशा.......................
..........................................................................................................................up ki