Thursday, August 18, 2011
Saturday, August 13, 2011
Monday, August 8, 2011
Wednesday, August 3, 2011
गीत की जुबान
नही .नहीं
याद नही ....
झे कुछ भी
झे कुछ भी
उस पहली मुलाकात का
र्फ़ इसके सिवा,
र्फ़ इसके सिवा,
जो तेरी आंखो से ..
मेरी आंखो तक ..
कुछ कौंध के आया था ..
देखा था बेशुमार प्यार
कुछ कौंध के आया था ..
देखा था बेशुमार प्यार
और साथ में ....
कई सवालों को मैंने
पर न जाने क्यों,
कई सवालों को मैंने
पर न जाने क्यों,
कहा दिल ने ,
यह कोई ख्वाब का साया था ,
सोचा फ़िर रात के अंधेरे मेंतुझे कई बार मैंने
जैसे कोई अजनबी खुशबु सी आ कर
बदन को सिहरा जाती है
आता है हाथो में एक हाथ यूँ ही ख्यालों में
और मुद्दतों से जमी कोई बर्फ पिघल जाती है .......
तब सुलग उठता है तन और मन
और ..........
जैसे इस बदन का अँधेरा
किसी की बाहों में उलझ के
बस अपना आखिरी दम
तोडना चाहता है
या जैसे कोई
बरसों से मांगी मुराद का
सपना अब सच होना चाहता है
पर तभी न जाने किस ख्याल से
रूह जिस्म तक कांप जाता है
लगता है यूं मुझे जैसे मैंने
अनजाने में कोई वर्जित फल
चख लिया है ....
तब मेरे बेजुबान बदन से
स्पर्श करते तेरे हाथ जैसे
एक चाँदनी का साया बन जाते हैं
प्यार के एहसास में डूबे यह हाथ भी
मेरे दिल के साथ सिसक जाते हैं
और तब यूं ही बहती हवा
ले जाती है उस रिश्ते की राख को
उन आखरों तक ...
जो दुनिया की नज़र में
आज तेरे मेरे लिखे
गीत की जुबान कहे जाते हैं !!
प्यार के एक पल ने जन्नत को दिखा दिया प्यार के उसी पल ने मुझे ता -उमर रुला दिया एक नूर की बूँद की तरह पिया हमने उस पल को एक उसी पल ने हमे खुदा के क़रीब ला दिया !!
चलना चाहते हो मेरे संग तो बन आकाश चलो मैं धरती बन कर कहीं तो तुम्हे छू ही लूंगी दूर रह कर भी दिलो में हो प्यार सा सहारा लौटना चाहूँ भी तो भी लौट न सकूंगी थाम कर हाथ चलो संग मेरे वहां जहाँ कहीं दूर मिला करते हैं धरती गगन विश्वास के साए में नया जहान ढूंढ ही लूंगी !!
जिधर जाते हैं सब ,उधर जाना अच्छा नही लगता... मुझे फरमान रास्तों का सफर अच्छा नही लगता
एक सवाल
हर सिहरते रिश्ते
को ,
जमीन देते हैं
चंद प्यार की फुहारे ,
विश्वास के बीज ,
और मौसम से
बदलते रंगों में
साथ चलने का
एहसास
पर .....
कैसे कोई
निभाये उन रिश्तों को
जिन की जमीन ही भुरभुरी हो ??
को ,
जमीन देते हैं
चंद प्यार की फुहारे ,
विश्वास के बीज ,
और मौसम से
बदलते रंगों में
साथ चलने का
एहसास
पर .....
कैसे कोई
निभाये उन रिश्तों को
जिन की जमीन ही भुरभुरी हो ??
न जाने क्यों ??
न जाने क्यों
ठहरे हुए पानी की तरह
मेरे लफ्ज़ भी काई से
कहीं मन में
ठिठक गए हैं ,
सन्नाटे की
आहट में
न कोई एहसास
न आंसुओं की
गिरती बूंदें
इसमें कोई
लहर नहीं बनाती
पर इस जमे हुए
सन्नाटे में
तेरे होने की
सरसराहट सी
एक उम्मीद जगाती है
की कहीं से प्रेम की
अमृत धारा
फिर से इन जमे हुए
एहसासों में
कोई लहर दे जायेगी
और फिर कोई
नयी कविता
पन्नो पर बिखर जायेगी !!!
ठहरे हुए पानी की तरह
मेरे लफ्ज़ भी काई से
कहीं मन में
ठिठक गए हैं ,
सन्नाटे की
आहट में
न कोई एहसास
न आंसुओं की
गिरती बूंदें
इसमें कोई
लहर नहीं बनाती
पर इस जमे हुए
सन्नाटे में
तेरे होने की
सरसराहट सी
एक उम्मीद जगाती है
की कहीं से प्रेम की
अमृत धारा
फिर से इन जमे हुए
एहसासों में
कोई लहर दे जायेगी
और फिर कोई
नयी कविता
पन्नो पर बिखर जायेगी !!!
लावा
लगता है कभी कभी
मेरे भीतर
एक लावा सा
बहता है
खून नहीं
तब ओढती हूँ बर्फ ,
और
सो जाती हूँ
एक ठण्ड का
एहसास दे कर
अपने दिल को बहलाती हूँ
पर ज्वाला मुखी सा लावा ,
जैसे धधकता ही रहता है
बर्फ होते हुए सीने में ,
बहता ही रहता है
और फिर टूटते हुए
बाँध की तरह
बह जाने को होता है
तब मैं उस बाँध पर
अपनी ख़ामोशी की
रोक लगा देती हूँ
और मुस्कराते हुए
हर लावे को
अपने भीतर समेट लेती हूँ .............??
यह लिखी गयी पंक्तियाँ कुछ अधूरी सी है ...........
परछाई
रात के घने अंधेरे
कैसे सब फ़र्क
मिटा जाते हैं
अलग अलग वजूद
अलग राह के
मुसाफिर की परछाई को
एक कर जाते हैं
रोशन होते ही
हर उजाले में
यह छिटक कर
अलग हो जाते हैं
:
:
शायद ज़िन्दगी का सच यही है ?????????
कैसे सब फ़र्क
मिटा जाते हैं
अलग अलग वजूद
अलग राह के
मुसाफिर की परछाई को
एक कर जाते हैं
रोशन होते ही
हर उजाले में
यह छिटक कर
अलग हो जाते हैं
:
:
शायद ज़िन्दगी का सच यही है ?????????
अंधेरों में कुछ रोशनी की बात तुम करो
अंधेरों में कुछ रोशनी की बात तुम करो
नजर और दामन बचा कर चलने की बात करो
भाषा भी है ,शब्द भी है पास कलम के हमारे
नजर और दामन बचा कर चलने की बात करो
भाषा भी है ,शब्द भी है पास कलम के हमारे
भावों में डुबो कर सही तस्वीर तुम करो
हर एक के हिस्से में हैं यह महफूज चंद साँसे
हर पल यूँ मर के जीने का रियाज न तुम करो
तलाशो न हर गजल के मायने कोई
लफ़्ज़ों का यूँ सरे आम कत्ल न तुम करो
कायम है हर रिश्ता ,यहाँ पर चंद शर्तों पर
दिल से प्यार का सफ़र अब ख्यालों में तय करो
सीखा है मुद्दतों बाद मेरी आँखों ने सोना
झूठे ख़्वाबों का रंग न अब इन में भरो
हर एक के हिस्से में हैं यह महफूज चंद साँसे
हर पल यूँ मर के जीने का रियाज न तुम करो
तलाशो न हर गजल के मायने कोई
लफ़्ज़ों का यूँ सरे आम कत्ल न तुम करो
कायम है हर रिश्ता ,यहाँ पर चंद शर्तों पर
दिल से प्यार का सफ़र अब ख्यालों में तय करो
सीखा है मुद्दतों बाद मेरी आँखों ने सोना
झूठे ख़्वाबों का रंग न अब इन में भरो
चाँद बंदी था कल यही
चाँद
यह गोल फुटबाल
को किसने टांगा
अम्बर पर
कल तो यह
मैदान में
खेलते हुए देखा था
चाँद
बंदी था कल यही
शाखाओं की बाहों में
फरार हुए कैदी सा
अब बादलों में छिपता है
चाँद
मुट्ठी में भर
छिपा लूँ सारी चाँदनी
बैरी जग को बता दूँ
कि जिसे वो
दाग़दार समझता है
वो ही चाँद
उसकी जिंदगी में
शीतल छाँव भरता है..
यह गोल फुटबाल
को किसने टांगा
अम्बर पर
कल तो यह
मैदान में
खेलते हुए देखा था
चाँद
बंदी था कल यही
शाखाओं की बाहों में
फरार हुए कैदी सा
अब बादलों में छिपता है
चाँद
मुट्ठी में भर
छिपा लूँ सारी चाँदनी
बैरी जग को बता दूँ
कि जिसे वो
दाग़दार समझता है
वो ही चाँद
उसकी जिंदगी में
शीतल छाँव भरता है..
अटके हुए पल
अटक जाता है मन
किसी ठहरे हुए
लम्हे पर
वह लम्हा
जो तेरे संग
कभी बचपने को चूमता
और कभी तेरी बातो सा
संजीदा हो जाया करता था
न जाने कब
अटके हुए यह पल
तेरी तरह
अब न आने की
कसम खायेंगे !!!
किसी ठहरे हुए
लम्हे पर
वह लम्हा
जो तेरे संग
कभी बचपने को चूमता
और कभी तेरी बातो सा
संजीदा हो जाया करता था
न जाने कब
अटके हुए यह पल
तेरी तरह
अब न आने की
कसम खायेंगे !!!
यूँ ही
डायरी के
पुराने पीले
पन्नो में
मिली है ..
कुछ यादें पुरानी
कुछ लफ्ज़
कुछ तस्वीरें
सोच में हूँ ...
क्या तुम भी
यूँ ही
मिल जाओगे कभी ?
पुराने पीले
पन्नो में
मिली है ..
कुछ यादें पुरानी
कुछ लफ्ज़
कुछ तस्वीरें
सोच में हूँ ...
क्या तुम भी
यूँ ही
मिल जाओगे कभी ?
एक सच
- सुना है
- लेह जैसे मरुस्थल में भी
- बादल फट कर
- खूब तबाही मचा गए हैं
- जहाँ कहते थे
- कभी वह बरसते भी नहीं
- ठीक उसी तरह
- जैसे मेरे मन में छाए
- घने बादल
- जब फटेंगे
- तो सब तरफ
- तबाही का मंजर नजर आएगा
- और फिर तिनको की तरह
- तुम्हारा वजूद
- जो अहम् बन कर
- खड़ा है बीच में हमारे
- कहीं इस रिश्ते के
- ठंडे रेगिस्तान में
- दफ़न हो जाएगा !
आहट
कल रात हुई
इक हौली सी आहट
झांकी खिड़की से
चाँद की मुस्कराहट
अपनी फैली बाँहों से
जैसे किया उसने
कुछ अनकहा सा इशारा
मैंने भी न जाने,
क्या सोच कर
बंद किया हर झरोखा
और कहा ,
रुक जाओ....
बहुत सर्द है यहाँ
ठहरा सहमा है हुआ
हर जज्बात....
शायद तुम्हारे यहाँ होने से
कुछ पिघलने का एहसास
इस उदास दिल को हो जाए
और दे जाए
कुछ धड़कने जीने की
कुछ वजह तो
अब जीने की बन जाए !!
इक हौली सी आहट
झांकी खिड़की से
चाँद की मुस्कराहट
अपनी फैली बाँहों से
जैसे किया उसने
कुछ अनकहा सा इशारा
मैंने भी न जाने,
क्या सोच कर
बंद किया हर झरोखा
और कहा ,
रुक जाओ....
बहुत सर्द है यहाँ
ठहरा सहमा है हुआ
हर जज्बात....
शायद तुम्हारे यहाँ होने से
कुछ पिघलने का एहसास
इस उदास दिल को हो जाए
और दे जाए
कुछ धड़कने जीने की
कुछ वजह तो
अब जीने की बन जाए !!
चाँद रात
मेरी नजरों की चमक
तेरी ...
नज़रों में बंद
कोई चाँद रात है
उलझी हुई सी धागे में
यह कोई जीने की सौगात है
और जब यह तेरी नजरें ...
ठहरतीं हैं
मेरे चेहरे पर ठिठक के
तब यह एहसास
और भी संजीदा हो जाता है
कि इस मुकद्दस प्यार का
बस यही लम्हा अच्छा है !!
Subscribe to:
Posts (Atom)