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Wednesday, June 15, 2011

शैवाल

मन के समंदर में 
न जाने कितने 
घने शैवाल  हैं 
दिखते तो नहीं 
पर ढकी है 
पूरी तलहटी 
इनके फैलाव से 
मेरे अंतर्मन का सच भी 
जैसे छिप सा  गया है 
मोती भरे सीप भी 
दिखते नहीं आज -कल 
तुम तैरना तो जानते हो 
पर गोताखोर नहीं हो 
शैवालों में उलझ 
लौट आते हो 
बार - बार साहिल पर 
काश होते गोताखोर तो 
ढूँढ ही लाते कोई मोती 
जिसे देख  मेरे मन पर 
छाई शैवाल की परत 
कुछ तो हल्की  होती .....................................................up ki

कोई भी रिश्ता

कोई भी रिश्ता बनते ही 
खड़ी हो जाती हैं 
उसके चारों ओर 
कई अदृश्य दीवारें ,

बिना दीवारों के 
रिश्तों की कोई 
अहमियत भी तो नहीं 

पर मात्र दीवारों पर 
डाल कर अपने 
नेह की चादर 
सोच लिया जाए कि 
बन गयी है छत 
और मुकम्मल हो गया 
रिश्तों का मकाँ
तो होगी शायद 
सबसे बड़ी भूल 

क्योंकि - 
हर रिश्ता 
जीने के लिए 
उसमें ज़रूरी है 
एक झरोखे का होना .
..............................up ki

आवारा से ख्वाब

आवारा से ख्वाब 

कभी भी चले आते हैं 
आँखों में 
चाहती हूँ कि 
कर लूँ बंद 
हर दरवाज़ा 
और न आने दूँ 
ख़्वाबों को 
लेकिन इनकी 
आवारगी ऐसी है 
कि बंद पलकों में भी 
समा जाते हैं 
घबरा कर 
खोल देती हूँ किवाड 
जो बामुश्किल 
बंद किये थे 
और वो ख्वाब 
तरल आँखों में 
बादल बन 
करते रहते हैं 
अठखेलियाँ 
जब तक 
बरस नहीं जाते 
लेते नहीं 
जाने का नाम
और जाते भी कहाँ हैं ?
बस खेलते हैं 
लुका -  छिपी 
और मैं 
देखती  रह जाती हूँ 
आवारगी ख़्वाबों की. 

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Monday, June 13, 2011

तुम बिन ...



तुम बिन सब सूना है ,
ये कमरा और ये गलियारा,
लगता है हर आहट पर,
तुम थे हाँ तुम ही तो थे,
हर पल का साथ याद आता है,
लेकिन फिर....होता है महसूस ,
तुम तो बहुत करीब  हो ,
हमारे अहसासों के बीच हो,
तुम ही तो हो ,
चिड़ियों की कलरव में,
आसमान की स्याही में,
हवा की ठंडक में ,
हाँ , तुम ही तो हो-
सूरज की पहली धूप में,
घुंघरू की रुनझुन में,
मंदिर के घंटें में ,
और ईश्वर की प्रार्थना में !
तुम तो एहसास हो-
हर दम हर पल साथ हो
फिर क्यों ?
तुम बिन सब सूना है
ये कमरा और ............................!!!

टूटते सपनों के साथ .....



टूटते सपनों के साथ

रिश्ते की चिता जलाती हूँ ,

उस सुलगती अग्नि बीच

खुद ही झुलसती जाती हूँ !

उम्मीदों के साथ

इंतजार को मुखाग्नि दे आई हूँ ,

उस जलती चिता बीच

खुद को ही छोड़ आई हूँ !

बुझते  ही  ज्वाला के

यादों की राख हाथ आनी है

और कांपते हाथों से 

बस तर्पण  करते जाना है !

हाँ -

टूटते सपनों के साथ ..................!!


.............................................up ki