फिर वही रात थी...
लेकिन वो रोज़ से अलग थी
कहीं ज़िन्दगी के रोशनदानो से
थोड़ी सी हवा आ रही थी...
उस हवा में एक चुलबुली सी बात थी
वो मुझे अपने साथ ले जा रही थी
उन यादों के घने जंगल में
जहाँ सब पहले जैसा ही था
उन यादों की ख़ामोशी में
एक आवाज़ अभी भी चहक रही थी
वो तुम्हारी ही कुछ अलग सी बातें थी
वो तुम्हारे हंसने के बीच
आवाज़ का रुक जाना
वो यादें थी तुम्हारी
नहीं शायद वो तुम ही थी
वो हवा मुझे बहुत दूर ले चली थी...
आज उस रात को बीतें काफी अरसा हो गया है
लेकिन उस जंगल में आज भी भटक रहा हूँ
शायद उस रात की कभी सुबह नहीं होगी
क्यूंकि वो रात रोज़ से अलग थी....
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