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Wednesday, May 4, 2011

कुछ मेरी बात... जी सायद आप सोमज नहीं पायो जी.............!!!!!

समय के साथ बहुत कुछ बदला है.. मैं भी बदला हूं, मेरी सोच के साथ-साथ परिस्थितियां भी बदली है.. कई रिश्तों के मायने बदले हैं.. पहले जिन बातों के बदलने पर तकलीफ़ होती थी, अब उन्ही चीजों को देखने का नजरिया भी बदला है और उन्हें उसी रूप में स्वीकार कर आगे बढ़ने की प्रवॄति भी आ गई है.. जिन चीजों के बदलने पर तकलीफ होती थी अब उन बातों को आसानी से स्वीकारने भी लगा हूं..
पहले कुछ भी अपना नहीं होता था, अब कई चीजें सिर्फ अपने लिये होने लगी हैं.. कभी-कभी लगता है कि कहीं स्वार्थी तो नहीं होता जा रहा हूं? मगर फिर लगता है कि अगर यह स्वार्थीपना है तो हम चारों ओर स्वार्थियों से ही घिरे हुये हैं.. वहीं कभी आशावादी तरीके से भी सोचता हूं.. सोचता हूं कि यही तो जीवन का सत्य है.. मानव स्वभाव है.. इसमें स्वार्थीपना कहीं भी नहीं है.. हर कोई अपना एक स्पेस चाहता है, तो उस स्पेस में क्यों जबरन घुसा जाये???????

अब रोना कम हो गया है.. पहले हर इमोशनल बातों पर रोना आता था.. अब वैसी बाते आने पर हंसी आती है.. खिसियानी हंसी.. लगता है जैसे खुद को धोखा देने कि कोशिश में लगा हूं.. दुनिया को दिखाना चाहता हूं कि देखो, मैं कितना प्रैक्टिकल हो गया हूं.. प्रक्टिकल होना या प्रोफेशनल होना अब भी मेरी समझ के बाहर की चीज है.. अब हर बात को पॉलिटिकली करेक्ट करने की कोशिश अधिक लगती है बजाये की दिल कि बात कही जाये.. प्रैक्टिकल होना या प्रोफेशनल होने का अभी तक एक ही मतलब समझ पाया हूं, महसूस कम करना.. कुछ भी महसूस ना करना.. जो जितना कम महसूस करता है, वह उतना ही प्रैक्टिकल है..

एक बात तो समझ में आती है कि मैंने मन में गांठ बांध लिया है की "बदलाव ही जीवन का अटूट सत्य है".. देर से ही सही, समझ में तो आया.. अब तुम्हारा वह पहाड़ी वाला शहर भी अधिक तकलीफ़ नहीं देता है, और ना ही यादों में अधिक ढ़केलता है.. सच कहूं तो तुम्हारे उस शहर आकर अंतरमन में रस्साकस्सी बहुत अधिक चलती है.. दिल उन यादों में डूबना चाहता है, मगर दिमाग कहीं और खींचना चाहता है..


एक बात जो समझा हूं, एक चीज कभी नहीं बदलती है.. चाहे सारा जमाना बदल जाये.. सारे रिश्तों के मायने बदल जाये.. ब्रह्मांड के बदलाव के नियम को झूठलाते हुये ना बदलने वाली चीज है-------------------------------------------------------!up ki


 

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