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Wednesday, June 15, 2011

आवारा से ख्वाब

आवारा से ख्वाब 

कभी भी चले आते हैं 
आँखों में 
चाहती हूँ कि 
कर लूँ बंद 
हर दरवाज़ा 
और न आने दूँ 
ख़्वाबों को 
लेकिन इनकी 
आवारगी ऐसी है 
कि बंद पलकों में भी 
समा जाते हैं 
घबरा कर 
खोल देती हूँ किवाड 
जो बामुश्किल 
बंद किये थे 
और वो ख्वाब 
तरल आँखों में 
बादल बन 
करते रहते हैं 
अठखेलियाँ 
जब तक 
बरस नहीं जाते 
लेते नहीं 
जाने का नाम
और जाते भी कहाँ हैं ?
बस खेलते हैं 
लुका -  छिपी 
और मैं 
देखती  रह जाती हूँ 
आवारगी ख़्वाबों की. 

.............................................................................................up ki

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