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Wednesday, June 15, 2011

कोई भी रिश्ता

कोई भी रिश्ता बनते ही 
खड़ी हो जाती हैं 
उसके चारों ओर 
कई अदृश्य दीवारें ,

बिना दीवारों के 
रिश्तों की कोई 
अहमियत भी तो नहीं 

पर मात्र दीवारों पर 
डाल कर अपने 
नेह की चादर 
सोच लिया जाए कि 
बन गयी है छत 
और मुकम्मल हो गया 
रिश्तों का मकाँ
तो होगी शायद 
सबसे बड़ी भूल 

क्योंकि - 
हर रिश्ता 
जीने के लिए 
उसमें ज़रूरी है 
एक झरोखे का होना .
..............................up ki

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