कोई भी रिश्ता बनते ही
खड़ी हो जाती हैं
उसके चारों ओर
कई अदृश्य दीवारें ,
बिना दीवारों के
रिश्तों की कोई
अहमियत भी तो नहीं
पर मात्र दीवारों पर
डाल कर अपने
नेह की चादर
सोच लिया जाए कि
बन गयी है छत
और मुकम्मल हो गया
रिश्तों का मकाँ
तो होगी शायद
सबसे बड़ी भूल
क्योंकि -
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमें ज़रूरी है
एक झरोखे का होना .
..............................up ki
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